प्रयागराज, अभिव्यक्ति न्यूज। Prayagraj Maha Kumbh का आगाज 13 जनवरी से बेहद शुभ संयोग में होगा। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत सोमवार को सुबह 5.03 बजे से होगी। Prayagraj Maha Kumbh का पहला शाही स्नान मकर संक्रांति के अवसर पर होगा।शाही स्नान का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5.27 से शुरू होगा। सुबह 5.27 बजे से 6.21 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 2.15 बजे से 2.57 बजे तक होगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 5.42 बजे से 6.09 बजे तक होगा। Prayagraj Maha Kumbh में 144 साल बाद दुर्लभ शुभ संयोग बनेगा।

Prayagraj Maha Kumbh में बन रहा बुद्धादित्य योग

ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार इस बार Prayagraj Maha Kumbh बेहद खास है। ग्रहों की स्थिति बेहद दुर्लभ संयोग बना रही है। 144 साल के बाद Prayagraj Maha Kumbh में समुद्र मंथन का संयोग बन रह है। बुधादित्य योग, कुंभ योग, श्रवण नक्षत्र के साथ ही सिद्धि योग में त्रिवेणी के तट पर श्रद्धालु डुबकी लगाएंगे। उन्होंने बताया कि चंद्र एवं बृहस्पति के प्रिय ग्रह बुध मकर राशि में हैं जो बुधादित्य योग बना रहे हैं। कुंंभ योग और राशि परिवर्तन योग इस महाकुंभ को अति विशिष्ट बना रही है। शनि की कुंभ राशि एवं शुक्र तथा बृहस्पति के राशि परिवर्तन की स्थिति का यह संयोग 144 सालों के बाद बन रहा है।

देवासुर संग्राम के समय निर्मित हुआ था यह योग

ज्योतिषाचार्य पं. प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार सूर्य, चंद्र और शनि तीनों ग्रह शनि की राशि मकर एवं कुंभ में गोचर कर रहे हैं। यह संयोग देवासुर संग्राम के समय निर्मित हुआ था। असुर गुरु शुक्र उच्च राशि में होकर बृहस्पति की राशि में तथा बृहस्पति शुक्र की राशि में हैं। इसके अलावा श्रवण नक्षत्र सिद्धि योग में सूर्य चंद्र की स्थिति तथा उच्च शुक्र एवं कुंभ राशि के शनि के कारण Prayagraj Maha Kumbh परम योगकारी होगा।

बृहस्पति के 12 गोचर चक्र पूरे होने पर लगता है महाकुंभ

ज्योतिषाचार्य पं. प्रतीक मिश्रपुरी ने बताया कि जब देवगुरु बृहस्पति शुक्र की राशि वृषभ में और सूर्य देव मकर राशि में गोचर करते हैं और जब देवगुरु बृहस्पति की नवम दृष्टि सूर्य देव पर पड़ती है। इस विशेष संयोग के कारण यह काल अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। जब देवगुरु बृहस्पति अपनी 12 राशियों का भ्रमण कर वापस वृषभ राशि में आते हैं, तब हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है।

समुद्र मंथन के नायकों का दायित्व निभा रहे दैत्य गुरु और देव गुरु

ज्योतिषाचार्य पं. प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार जिस वर्ष देवगुरु बृहस्पति के वृषभ राशि में गोचर के 12 चक्र पूरे हो जाते हैं, तो उस वर्ष लगने वाले कुंभ को पूर्ण महाकुंभ कहा जाता है। इस बार ऐसी ही स्थिति बन रही है। इसके साथ ही एक विशेष संयोग भी बन रहा है। जब देवासुर संग्राम हुआ था तब राक्षसों के गुरु शुक्र थे। इस बार वह उच्च स्थिति में राहु और केतु के साथ हैं, जबकि देवगुरु बृहस्पति शुक्र की राशि में हैं। देवासुर संग्राम के समय जो ग्रहों की स्थिति थी, उसी स्थिति में Prayagraj Maha Kumbh में शुक्र दैत्य गुरु तथा बृहस्पति देवगुरु पूरी तरह से समुद्र मंथन के नायकों का दायित्व निभा रहे हैं।

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