बेंगलुरु, अभिव्यक्ति न्यूज। कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को संपत्ति विवाद के मामले में सुनवाई करते हुए संसद और राज्य विधानमंडलों से एक ऐसा कानून बनाने के लिए ठोस प्रयास करने का आग्रह किया है, जिससे समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू हो सके। न्यायालय ने कहा- Uniform Civil Code से ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उद्देश्य हासिल किया जा सकता है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने गोवा और उत्तराखंड सरकारों की ओर से Uniform Civil Code की दिशा में किए गए प्रयासों का हवाला देते हुए सभी नागरिकों, विशेषकर महिलाओं के लिए समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय के संवैधानिक दृष्टिकोण को कायम रखने में इसके महत्व पर जोर दिया।

दिवंगत मुस्लिम महिला की संपत्ति के विवाद की सुनवाई के दौरान की अनुशंसा
यह महत्वपूर्ण अनुशंसा न्यायमूर्ति हंचाटे संजीव कुमार की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने दिवंगत मुस्लिम महिला शहनाज बेगम के पति और भाई-बहन के बीच संपत्ति विवाद से संबंधित दीवानी अपील पर फैसला सुनाते हुए की। इस मामले ने व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों से शासित उत्तराधिकार कानूनों और लैंगिक न्याय पर उनके निहितार्थों के बारे में व्यापक प्रश्न उठाए। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता के अधिनियमन से प्रस्तावना में निहित आदर्शों अर्थात न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और राष्ट्रीय एकता को पूरा किया जा सकेगा।
देश को पर्सनल लॉ और धर्म के संबंध में एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता
अदालत ने चार अप्रैल को अपनी टिप्पणी में कहा, देश को पर्सनल लॉ और धर्म के संबंध में एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है। तभी भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उद्देश्य प्राप्त होगा। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि देशभर में महिलाओं को संविधान के तहत समान अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन धर्म आधारित व्यक्तिगत कानूनों के कारण उनके साथ असमान व्यवहार किया जाता है। पीठ ने इस असमानता को स्पष्ट करने के लिए हिंदू और मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों के तहत उत्तराधिकार अधिकारों की तुलना की। जहां हिंदू कानून बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार देता है, वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ भाइयों और बहनों के बीच अंतर करता है। भाइयों को ‘हिस्सेदार’ का दर्जा देता है, जबकि बहनों को तुलनात्मक रूप से कम हिस्सा मिलता है।
निर्णय की प्रति केंद्र और कर्नाटक सरकार को भेजने का निर्देश
न्यायालय ने इस बात पर गौर करते हुए कि गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्य पहले ही समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में कदम उठा चुके हैं, रजिस्ट्रार जनरल को उसके निर्णय की एक प्रति केंद्र सरकार और कर्नाटक सरकार के प्रधान विधि सचिवों को भेजने का निर्देश दिया ताकि ऐसी संहिता लागू करने की दिशा में विधायी प्रयास शुरू किए जा सकें। अदालत ने डॉ. बीआर आंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, टी. कृष्णमाचारी और मौलाना हसरत मोहानी के भाषणों का हवाला दिया है, जिसमें राष्ट्रीय एकता और समानता को बढ़ावा देने के लिए समान नागरिक कानूनों के प्रति उनके समर्थन को रेखांकित किया गया है।
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