मुरादाबाद, अभिव्यक्ति न्यूज। हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी प्रमुख पर्व है। यह त्योहार संतान की दीर्घायु के लिए मनाया जाता है। माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए उपवास करती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाए जाने वाले अहोई अष्टमी पर माताएं दिन भर व्रत रखकर अहोई माता की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करती हैं। महिलाएं दिन भर व्रत रहने के बाद के देर शाम को आकाश में तारों को देखकर अपने व्रत का पारण करती हैं और संतान की लंबी आयु और उन्हें निरोगी रहने का आशीर्वाद मांगती हैं।

अहोई अष्टमी के व्रत की पौराणिक कथा

अहोई अष्टमी व्रत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा इस प्रकार है बताई जाती है। प्राचीन समय में एक महिला अपने बच्चों के लिए दीपावली की तैयारी कर रही थी। वह जंगल से मिट्टी लाने गई, जिससे वह अपने घर को सजाने के लिए खिलौने बना सके। मिट्टी खोदते समय गलती से उसके फावड़े से साही के बच्चे की मौत हो गई। इस घटना से वह महिला बहुत दुखी हुई और उसे लगा कि यह उसके लिए अशुभ होगा। शिशु स्याह की मृत्यु से संबंधित दोष को दूर करने के लिए वह महिला एक साधु से मिली। साधु ने उसे अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत करने की सलाह दी। उसने पूरी श्रद्धा के साथ यह व्रत किया और उसे संतान सुख प्राप्त हुआ। तब से यह व्रत संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए किया जाता है।

अहोई अष्टमी की पूजन विधि

अहोई अष्टमी के दिन माताएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं जल तक ग्रहण नहीं करतीं और निर्जला व्रत करती हैं। महिलाएं दीवार पर अहोई माता का चित्र या प्रतीक बनाती हैं। इसमें सात पुत्रों वाली अहोई माता का चित्रण किया जाता है। कई महिलाएं अहोई माता की मूर्ति भी स्थापित करती हैं। पूजा के लिए दूध, चावल, हलवा, पूजा की थाली, रोली, सिंदूर, कलश, पानी का लोटा, दीपक, धूप-दीप और कुछ मिठाई का प्रबंध किया जाता है।

दिन भर निर्जला व्रत, शाम को होती है पूजा

अहोई अष्टमी की व्रत करने वाली माताएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं। इस दौरान वह पानी तक नहीं पीती हैं। इसके बाद शाम को अहोई माता की पूजा की जाती है। यह पूजन विशेष रूप से सूर्यास्त के बाद किया जाता है। महिलाएं अहोई माता के सामने दीप जलाकर, धूप-दीप से पूजा करती हैं। पूजा के दौरान अहोई अष्टमी की कथा सुनाई जाती है। कथा सुनने के बाद महिलाएं अहोई माता से अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। पूजा के बाद, महिलाएं रात में आसमान में तारे देखकर पूजा को संपन्न करती हैं। ऐसा माना जाता है कि तारे देखकर व्रत का समापन होता है, और इसके बाद महिलाएं जल ग्रहण कर सकती हैं।

अहोई अष्टमी के व्रत का ज्योतिषीय महत्व

अहोई अष्टमी पर किए जाने वाले व्रत-पूजन को ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी महत्वपूर्ण माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से चंद्रमा और मंगल ग्रह से संबंधित है। इस दिन चंद्रमा का विशेष पूजन किया जाता है क्योंकि चंद्रमा को माता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन चंद्रमा की पूजा करके संतान के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने की मान्यता है। इसके साथ ही मंगल ग्रह को संतान से जुड़ा हुआ माना जाता है, और इस दिन की गई पूजा से संतान संबंधी परेशानियां दूर होती हैं। अहोई अष्टमी का व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। कृष्ण पक्ष का समय अंधकार और कठिनाइयों से जुड़ा हुआ होता है, इसलिए इस समय की गई पूजा का विशेष महत्व होता है। इसे विपरीत परिस्थितियों में भी संतान की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिए किया जाता है।

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