नई दिल्ली। जनसंख्या के मामले में हिन्दुस्तानी दुनिया में सबसे आगे हो गए हैं। यह दावा संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) ने विश्व जनसंख्या स्थिति- 2024 की रिपोर्ट में किया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत की आबादी 144.17 करोड़ पहुंच गई है। भारत की जनसंख्या का यह आंकड़ा 77 वर्ष में दोगुना हुआ है। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि भारत में 24 फीसदी आबादी 0-14 आयु वर्ग में है, जबकि 15-64 आयु वर्ग वाले 68 प्रतिशत हैं। वहीं दुनिया में अनुमानित आबादी के साथ भारत सबसे आगे हैं, जबकि चीन 142.5 करोड़ के साथ दूसरे स्थान पर है। बता दें, 2011 में हुई पिछली जनगणना के दौरान भारत की जनसंख्या 121 करोड़ दर्ज की गई थी।
यूएनएफपीए ने ‘इंटरवॉवन लाइव्स, थ्रेड्स ऑफ होप: यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों में असमानताओं को समाप्त करना’ नाम से रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा कि 10-24 आयु वर्ग वाले 26 प्रतिशत हैं। वहीं पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष है।
प्रजनन स्वास्थ्य 30 साल में बेहतर
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य 30 वर्षों में बेहतर स्तर पर है। इस अंतराल में भारत में मातृ मृत्यु में गिरावट आई है। यह दुनिया में ऐसी मौतों में भारत का हिस्सा 8 फीसदी है। इस सफलता का श्रेय सस्ती, गुणवत्तापूर्ण मातृ स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच को दिया जा रहा है। हालांकि, पिछले 17 साल (2006-2023) के बीच भारत में 23 फीसदी बाल विवाह भी हुए।
प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में गिरावट
भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में गिरावट देखने को मिली है। पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ के रिपोर्ट का हवाला देते हुए यूएन ने बताया कि 640 जिलों में प्रसव के दौरान होने वाली मौतों के अनुपात में एक लाख जीवित जन्मों में 70 से भी कम है। वहीं 114 जिलों में यह अनुपात 210 या उससे ज्यादा है। प्रति एक लाख जन्मों पर सबसे अधिक 1,671 अरुणाचल प्रदेश के तिराप जिले में देखा गया।
महिलाओं में यौन हिंसा का खतरा बढ़ा
रिपोर्ट में महिलाओं की यौन स्थिति पर चिंता जाहिर की गई है। इसके मुताबिक, 2016 के बाद से दुनिया में हर दिन 800 महिलाओं की बच्चे को जन्म देते समय मौत हो जाती है। वहीं 25 फीसदी महिलाएं यौन संबंध बनाने से मना नहीं कर पातीं, जबकि 10 में से एक महिला गर्भनिरोधक उपायों के बारे में खुद निर्णय लेने में असमर्थ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिव्यांग महिलाओं में यौन हिंसा का खतरा दिव्यांग पुरुषों की अपेक्षा 10 गुना अधिक है। इसके अलावा, प्रवासी, शरणार्थी, अल्पसंख्यक, एचआईवी पीड़ित और वंचित दलित वर्गों की महिलाओं को भी यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में जोखिम का सामना करना पड़ा रहा है।