प्रयागराज, अभिव्यक्ति न्यूज। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) द्वारा आयोजित पीसीएस और आरओ/एआरओ प्रारंभिक परीक्षा में मानकीकरण (Normlisation) को लेकर तीन दिन से चल रहे छात्रों के विरोध पर शिक्षाविदों और विषय के विशेषज्ञों ने हैरानी जताई है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगी छात्रों से उम्मीद की जाती है कि वह पहले Normlisation की पूरी प्रक्रिया को समझें और इसके बाद ही कोई निर्णय लें। जो छात्र स्वयं प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन्हें चिंतन करना चाहिए कि इस तरह सड़कों पर उतरकर अव्यवस्था उत्पन्न करने का आचरण उनसे अपेक्षित व्यवहार से मेल नहीं खाता है। प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं में गुणात्मक सुधार की आवश्यकता महसूस की गई। मानकीकरण की प्रणाली कई राज्यों में प्रतियोगी परीक्षाओं में अमल में लाई जा रही है। इस आधार पर भी इसे लागू करने का विरोध समझ से परे है। उधर, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे तमाम छात्रों ने भी विरोध को तकनीकी विषय नहीं बल्कि कुछ सियासी दलों द्वारा अपनी सियासत को धार देने के लिए पूर्व नियोजित बताया है।
कई राज्यों में प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रयोग की जा रही Normlisation प्रणाली
प्रयागराज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी का कहना है कि जो छात्र स्वयं प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन्हें चिंतन करना चाहिए कि इस तरह सड़कों में उतरकर अव्यवस्था उत्पन्न करने का आचरण उनसे अपेक्षित व्यवहार से कैसे मेल खाता है। आंदोलित छात्रों को मानकीकरण (Normlisation) की प्रक्रिया की वास्तविक स्थिति की जानकारी लेने के उपरांत ही कोई निर्णय लेना चाहिए। इधर मानकीकरण की प्रक्रिया पर भी विषय विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी है। शिक्षाविद और काउंसलर डॉक्टर अपूर्वा भार्गव का कहना है कि मानकीकरण की प्रक्रिया का विरोध अगर इस आधार पर कुछ आंदोलित छात्र कर रहे हैं कि इसमें उस विषय के अंतर्गत आने वाले विभिन्न सेक्शन में सरल और कठिन प्रश्नों के पूछे जाने से समान लाभ सबको नहीं मिलेगा तो यह उचित नहीं है। प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं में गुणात्मक सुधार की आवश्यकता हमेशा से रही है, ताकि इस सेवा के योग्य अभ्यर्थियों को इसमें स्थान मिल सके। मानकीकरण की प्रक्रिया भी इसी परीक्षा में गुणात्मक सुधार का एक प्रयास है। पहले से कई राज्यों में यह प्रणाली अमल में लाई जा रही है। इस आधार पर भी इसे लागू करने का विरोध समझ से परे है।
Normlisation में छात्रों का ही फायदा
शिक्षाविद् और विशेषज्ञों के अतिरिक्त कई कोचिंग संस्थान संचालित करने वालों का भी मानना है कि छात्रों को मानकीकरण की प्रक्रिया को समझना चाहिए। ऑनलाइन चलने वाली एक कोचिंग के प्रयागराज के सेंटर हेड ने भी पूरी प्रक्रिया का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया तो बहुत पहले लागू कर देनी चाहिए थी, क्योंकि इसमें काबिल छात्रों का ही फायदा है। नीट परीक्षा में भी इसे लागू किया गया था। यही नहीं, दूसरे राज्य भी कई परीक्षाओं में इसे शामिल कर चुके हैं और वहां इसका कोई विरोध भी नहीं हुआ। यहां इसका विरोध क्यों हो रहा है, ये समझना मुश्किल है। वह कहते हैं कि शासन तंत्र को इस प्रक्रिया के सकारात्मक पक्षों को प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रों को समझाना चाहिए।
UPPSC के बाहर आंदोलन को लेकर कई प्रतियोगी छात्रों में नाराजगी
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे कई छात्र भी UPPSC की पीसीएस और आरओ/एआरओ प्रारंभिक परीक्षाओं में लागू की जा रही Normalisation प्रक्रिया के विरोध को तकनीकी विषय नहीं बल्कि कुछ सियासी दलों द्वारा प्रायोजित बता रहे हैं। वह कहते हैं कि कई सियासी दलों की ओर से आंदोलन पूर्व नियोजित था। यूपी के कानपुर निवासी सुनील सिंह प्रयागराज में रहकर प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर रहे हैं। वह कहते हैं कि छात्रों की इस भीड़ में राजनैतिक दलों के नेता भी अपना सियासी मकसद लेकर कूद पड़े हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे एक अन्य छात्र लखनऊ के राम सेवक का कहना है कि राजनैतिक दल अपनी सियासत चमकाने की फिराक में रहते हैं। राजनेताओं को जहां भी भीड़ मिलेगी उसे अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं।
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छात्रों की सुविधा और मांग पर परीक्षा प्रणाली में किया गया बदलाव : लोक सेवा आयोग
प्रतियोगी छात्रों के आंदोलन के साथ ही UPPSC लगातार परीक्षा प्रणाली में किए गए बदलाव को लेकर छात्रों से संवाद बनाए हुए है और उनके सामने स्थिति को साफ करने की कोशिश में लगा है। UPPSC के सचिव अशोक कुमार का कहना है कि छात्रों की सुविधा और मांग पर ही शासन ने परीक्षा संबंधी नियमावली में बदलाव किया है। जब छात्रों ने आयोग के सामने प्रदर्शन कर यह मांग रखी थी कि निजी स्कूल-कॉलेजों को केंद्र न बनाया जाए और परीक्षा केंद्रों की दूरी अधिक न हो। इसके बाद उनकी मांगों पर ही राजकीय और एडेड कॉलेजों को केंद्र बनाया जा रहा है और दूरी अधिकतम दस किलोमीटर रखी गई है। उनका यह भी कहना है कि Normalisation सामान्य प्रक्रिया है और अधिकांश परीक्षाओं में इसे इस्तेमाल किया जा रहा है। आयोग ने भी विशेषज्ञों से फॉर्मूले पर राय ली है। इसमें किसी तरह के भेदभाव की कोई गुंजाइश ही नहीं है।
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