नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में Bilkis bano gangrape case में सजा में छूट देकर समय से पहले सभी 11 दोषियों को जेल से रिहा किए जाने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए इस मामले के सभी दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। इस मामले में बिलकिस बानो के परिवार के सात लोगों की हत्या भी कर दी गई थी, जिनमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने 250 पन्नों में सुनाया फैसला
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने 250 पन्नों के अपने फैसले में गुजरात सरकार पर अपनी शक्तियों के दुरुपयोग और मामले के एक दोषी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि गुजरात सरकार ने दोषियों को सजा में छूट देते समय विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित बिलकिस बानो की ओर से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया। बिलकिस बानो ने याचिका में गुजरात सरकार द्वारा 15 अगस्त, 2022 को सजा में छूट देकर सभी दोषियों को जेल से रिहा किए जाने को चुनौती दी थी।
सजा प्रतिशोध नहीं, सुधार के लिए दी जाए
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को सजा में छूट देकर रिहा किए जाने के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि सजा प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि भविष्य में होने वाले अपराध में रोकथाम और कैदियों में सुधार के लिए दी जानी चाहिए क्योंकि जो हो चुका है, उसे पूर्ववत नहीं किया जा सकता। पीठ ने यूनानी दार्शनिक प्लेटो के इस कथन से अपने फैसले की शुरुआत की। प्लेटो ने कहा था कि सजा देने वाले को, जहां तक हो सके उस डॉक्टर की तरह काम करना चाहिए, जो केवल दर्द के लिए नहीं, बल्कि रोगी का भला करने के लिए दवा देता है। सजा के इस उपचारात्मक सिद्धांत में दंड की तुलना दंडित किए जाने वाले व्यक्ति की भलाई के लिए दी जाने वाली दवा से की गई।
गुजरात सरकार को नहीं था अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गुजरात सरकार को दोषियों को सजा में छूट देकर रिहा करने का अधिकार नहीं था। शीर्ष अदालत ने फैसले में साफ किया कि जिस राज्य की अदालत में किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, उसी राज्य को दोषियों को सजा में छूट देने संबंधी अर्जी पर निर्णय लेने का भी अधिकार होता है। पीठ ने कहा कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो इस मामले में दोषियों पर महाराष्ट्र की अदालत में मुकदमा चलाया गया था, लिहाजा दोषियों को सजा में छूट देने का अधिकार भी महाराष्ट्र सरकार के पास था। अदालत ने कहा, कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया, जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया।
यह है मामला
गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। राज्य में भड़की हिंसा के दौरान बिलकिस के साथ दुष्कर्म किया गया और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई। इसमें उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। इस मामले में गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट देकर उन्हें रिहा कर दिया था। गुजरात सरकार द्वारा दोषियों की रिहाई के खिलाफ माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दाखिल की थीं।